काले बादल है घंगोर
चा रहा है सनाठा चारों और न है दिल पर कोई जोर
पर जंच रहा है कानो में एक शोर
क्या यहें है कमोशी की शोर ???
शितिज तो यह रहा पर मंजिल यह नहीं
जीवन के इस अद्बुत ताल में उलाज न जाऊँ हर हाल में ..
सोच रही दिल ही दिल में बुला दू सारे घाम इसी पल में
दुभ जाना है कमोशी की सागर में एहसास की एस अनोके चादर में
लेकिन बढ़ रहा यह समय के साथ
न ले रही रुकने की बात
पर जब केसी ने थमा यह हाथ थम गेई कमोशी की रात
मिला जो साथ का वादा
न सोच सकी में ज्यादा गा उटी जोर से मुक्त हूँ कमोशी की एस शोर से
.....2001
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